परिवार होना चाहिए
जैसे हर एक कड़ी के जुड़ने से, अटूट श्रृंखला का निर्माण होता है।
ठीक वैसे प्राणियों के संवाद से, जीवित सभ्यता का भान होता है।
यहाँ हर व्यक्ति के जीवन में, बस खुशियों का संसार होना चाहिए।
हर प्रकार की परिस्थितियों में, सबके संग में परिवार होना चाहिए।
स्वावलंबी व प्राइवेसी की आड़ में छिपा, मनुष्य बड़ा ही शातिर है।
परिवार समाप्ति की ओर अग्रसर, आज यह तासीर जगजाहिर है।
हर मनुष्य ही सच बोलेगा, अभिव्यक्ति का अधिकार होना चाहिए।
हर प्रकार की परिस्थितियों में, सबके संग में परिवार होना चाहिए।
यूॅं शहरीकरण के दानव ने, ग्रामीण-परिवेश को विलुप्त कर दिया।
शहर गए हर एक ग्रामीण को, चिरकाल निद्रा में सुषुप्त कर दिया।
अंततः यह बात माननी पड़ेगी, अब और न प्रतिकार होना चाहिए।
हर प्रकार की परिस्थितियों में, सबके संग में परिवार होना चाहिए।
साथ में परिवार की शक्ति बढ़ती, सबके सुख-दुःख साझा होते हैं।
बुजुर्ग सलाहकार, बड़े रक्षक और सभी छोटे सदस्य राजा होते हैं।
समूह में एकता का बल है, ये कथन सबको स्वीकार होना चाहिए।
हर प्रकार की परिस्थितियों में, सबके संग में परिवार होना चाहिए।
हर चुप्पी को संवाद ही तोड़े, दिल एकांत से समूह में मुड़ने लगेगा।
व्यवहार के ससंजन बल से, बिखरा घर-परिवार भी जुड़ने लगेगा।
जो सबको जोड़कर रखे, वाणी-विचार में वो संस्कार होना चाहिए।
हर प्रकार की परिस्थितियों में, सबके संग में परिवार होना चाहिए।
परिवार बनाने से लेकर बचाने तक, हर क्षण परीक्षा का पर्याय है।
भंग होने के भय से लेकर जय तक, हर रण समीक्षा का पर्याय है।
सर्वगुण संपन्न न बनो, न सही, किंतु मन में सदाचार होना चाहिए।
हर प्रकार की परिस्थितियों में, सबके संग में परिवार होना चाहिए।