परिवर्तन
परिवर्तन ……
आज ऐसे कैसे दिन हो गए,
कि हम शब्द विहीन हो गए,
समझाने के तरीके बदल गए,
लापरवाह भी अब संभल गए,
बच्चों को साथ रहना हम सिखाते थे,
आज दूर दूर रहना हम सिखा रहे हैं,
बाहर खेलना कभी सिखाते थे,
घर में रहना आज सिखा रहे हैं,
मोबाइल कंप्यूटर से दूर रखते थे,
आज उसी पर शिक्षा दिला रहे हैं,
साथ उठना-बैठना,खाना सिखाते थे,
आज अकेले कैसे रहना ये बता रहे हैं,
खुलकर हंसा करो कभी कहा करते थे,
मुंह ढककर हंसो आज समझा रहे हैं,
अपनों के करीब रहा करो कहा करते थे,
दूरी बना कर रहा करो ये समझा रहे हैं,
परिवर्तन ही परिवर्तन हुआ है संसार में
गले मिलते थे जहाँ,हाथ भी नहीं मिला रहे हैं।
–पूनम झा
कोटा, राजस्थान
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