पनीर हि पनीर था
पनीर हि पनीर था और पनीर क्या कुछ नहीं था
मैं जब आया तो तिरे घर में पका कुछ नहीं था
ये भी सच है की कढ़ाई में बने थे साग सब्जी
ये भी सच है कि कढ़ाई में बचा कुछ नहीं था
देख तिरी रोटी आते – आते पेट भर गया मिरा
वरना उस मानचित्र से अच्छा वहाँ कुछ नहीं था
वैसे ज़िद थी तुम्हारी तो खा – पी लिया मैं वैसे
इक गिलास पानी के सिवा जचा कुछ नहीं था
ऐसा लगता है सौ गाली पढ़ कर दा’वत थी वो
जो भी खाया था न उसमें से पचा कुछ नहीं था
उफ़ कितनी उम्दा थी हसीं हाथ की मेहंदीं कुनु
लेकिन उस हाथ की चाय से बुरा कुछ नहीं था
@कुनु