….. .. पद ……
भगवन!क्यों नहिं दर्शन पाऊँ ।
योग मंत्र श्रुति ग्रन्थ न जानू , कैसे तुमको ध्याऊँ ?
मृदु-पद उन्मुख सतत् हृदय में , मूरति मञ्जु सजाऊँ ।
सजल नयन अवरुद्ध कण्ठ से , कैसे मैं गुण गाऊँ ?
असुर कुपित पतितों को तारा , कैसे यह बिसराऊँ ?
राम रटूँ शिव श्याम मान सम , मुरली मधुर बजाऊँ ।
अगणित जीवन वार चुका , अब, हठ कर प्राण गवाऊँ ।