… पद ..।
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भगवन ! क्यों नहिं दर्शन पाऊँ ?
योग मन्त्र श्रुति ग्रन्थ न जानू , कैसे तुमको ध्याऊँ ?
श्री ! पद उन्मुख सतत हृदय में , मूरति मञ्जु सजाऊँ ।
सजल नयन अवरुद्ध कण्ठ से , कैसे मैं गुण गाऊँ ?
असुर कुपित पतितों को तारा , यह कैसे बिसराऊँ ?
राम रटूँ शिव श्याम मान सम , मुरली मधुर बजाऊँ ।
अगणित जीवन वार चुका , अब , हठ कर प्राण गवाऊँ ।
डा. उमेश चन्द्र श्रीवास्तव
लखनऊ