पद्म
जल में गुलाबी रंग के निखरते हैं ,
अपनी सौंदर्य को चारों दिशाओं में बिखरते हैं।
लालिमा छा जाती है भोर के समय ,
वातावरण को करती है मधुमय।
प्रतिबिंब जल में अपनी ही देखती है ,
पत्तों में बूंदों को स्थिर रखती है ।
मां सरस्वती जिसके ऊपर है विराजमान ,
श्वेत कमल पर बैठी फैलाती है ज्ञान।
श्री विष्णु के कर में जो सुशोभित है ,
माता लक्ष्मी जिसमें विराजित है ।
चतुर्मुख ब्रह्मा भी तपस्या करते हैं ,
मनुष्य के भाग्य को रचते हैं ।
पद्म ,पंकज, जलज कितने ही नाम है ,
अपने आसपास को महकाती सुबह शाम है।।