पद्मिनी की मर्यादा
” पद्मिनी की मर्यादा ”
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उस जौहर व्रत की अग्नि में ,
पद्मा ने खुद को हवन किया |
वो नारी थी ,वो सबला थी ,
शक्ति को जिसने प्रबल किया ||
कामुक खिलजी की कामुकता ,
खुद उसके मन में धरी रही |
पद्मा कूदी जौहर में पर !
मर्यादा उसकी हरी रही ||
वो पद्मा थी ,वो ज्वाला थी ,
और गढ़-चित्तौड़ का मान थी |
मर्यादा थी उसको प्यारी ,
वह आन-बान और शान थी ||
आज बना कलयुग का खिलजी !
वह संजय लीला भंसाली |
पद्मा जैसी माँ -बेटी को !
वो कलुषित कर देता गाली ||
खुले सांड सा घूम रहा है ,
वह लेकर फिल्मी अफसाने |
कदम-कदम पर खड़े हैं रक्षक !
ऐसे खिलजी को दफनाने ||
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(डॉ०प्रदीप कुमार “दीप”)
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