*पत्थर तैरे सेतु बनाया (कुछ चौपाइयॉं)*
पत्थर तैरे सेतु बनाया (कुछ चौपाइयॉं)
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1
पत्थर तैरे सेतु बनाया।
रामचंद्र जी की सब माया।।
पत्थर यों तो थे सब भारी।
तैराने की थी तैयारी।।
2
नील और नल निपुण कहाए।
पत्थर जल में यह तैराए।।
वानर सेना पार उतारी।
रामसेतु शुभ मंगलकारी।।
3
दर्शन रामसेतु सुखकारी।
कहा राम ने यह दुखहारी।।
रामेश्वरम शंभु की पूजा।
कार्य नहीं इसके सम दूजा।।
4
दूत बना अंगद भिजवाए।
नीति-वचन रावण समझाए ।।
कहा राम के चरण पखारो।
मन में बसे अहम् को मारो ।।
5
अंगद का पग हिला न पाए।
लौट-लौट दरबारी आए।।
रावण जब पग उठा हिलाने।
अंगद लगा उसे समझाने।।
6
कहा व्यर्थ जग में मत अकड़ो।
उचित पैर प्रभु के जा पकड़ो।।
मंदोदरी बहुत समझाई।
समझ दशानन मगर न आई।।
7
दुश्मन सिर पर चढ़कर आया।
राग-रंग की हटी न छाया।।
नृत्य अप्सरा सुंदर करतीं।
बुद्धि दशानन की यों हरतीं।।
8
छत्र मुकुट ताटंक गिराए।
एक बाण जब राम चलाए।।
रहा मूर्ख रावण अभिमानी।
कहा शीश दस का मैं दानी।।
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ताटंक = कर्णफूल
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रचयिता : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 99976 15451