पते की बात – दीपक नीलपदम्
बात पते की एक है, इसे बाँध लो खूँट,
जिसके पीछे भागोगे, वो जाएगा छूट ।
बिखर गए जो जान दे, उनको नहीं समेट,
जोड़ रहा क्या वावले, सपने जाते टूट ।
चार दिनों की ज़िन्दगी, जी लेवें भरपूर,
साँसें तन त्यागे ऐसे, जैसे उड़े कपूर ।
पंछी किसके आसरे, होवे किसका कौन,
सबको दाता देत है, फ़रियाद करो रह मौन ।
काम करो ऐसे नहीं, जैसे करे मशीन,
यान्त्रिकता में खो गये, औ हुए संवेदनाहीन ।
साँस सुलग कर हो रहीं, कोयला और फिर राख़,
देख तरक्की दोस्त की, क्यों तू बनता खाक ।
(c)@ दीपक कुमार श्रीवास्तव “नील पदम्”