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31 Mar 2024 · 1 min read

प्रीतम के दोहे

तानाशाही जो करे, मानो रावण कंश।
दंभ मिटा ख़ुद भी मिटे, बचा नहीं कुछ अंश।।//1

राजनीति के खेल में, बुरा करो मत मेल।
वरना ठहरे जो नहीं, ऐसा निकले तेल।।//2

झूठ बोलना पाप है, मिले न इसकी बेल।
अंतिम है ईनाम यह, देख लीजिये ज़ेल।।//3

भूल स्वयं को जो चले, हारे हर वह दाँव।
कौआ फँसकर जाल में, करना भूले काँव।।//4

लाज शर्म मत बेचिए, ज़िस्त बने बेहाल।
शक्ति देह की कम हुई, कैसे जन्मे लाल।।//5

सदा गिराए नीचता, खींचे ऐसी खाल।
उगे नहीं जिसमें कभी, एक प्रेम का बाल।।//6

प्रीतम तेरी सीख से, बना नेक इंसान।
गुरुवर तुमको मानकर, हारा न इम्तिहान।।//7

आर. एस. ‘प्रीतम’

Language: Hindi
1 Like · 43 Views
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