” पति सीता के “
हे श्री राम !
आप जन – जन के लिए
ईश्वर का अवतार बने
परन्तु सीता के लिए
ईश्वर से सिर्फ पति बने ,
कहते हैं पति परमेश्वर होता है
लेकिन आप परमेश्वर होकर भी
सिर्फ पति ही रहे ,
कारण बताएंगे
या यूँ ही सारे पतियों की तरह
मौन रह जाएंगे ???
आप तो सीता के स्वामी थे अधिपति थे
पति के रूप में सक्षम थे रक्षक थे ,
संपूर्ण ब्रम्हांड के ज्ञाता आप
समस्त ईक्षाओं के दाता आप ,
पत्नी के मन की ना समझ सके
अग्नि में जाने से पहले
सीता का हाथ हक़ से ना पकड़ सके ?
उनका तो सर्वस्व न्यौछावर था आप पर
आन – बान – शान सब निर्भर था आप पर ,
पर आप ने तो….
खुद की ना सुन कर धोबी की सुनी
मन ही मन सीता के वन गमन की गुनी ,
आप तो शून्य में भी शब्द भरते हैं
फिर क्यों सीता के वाक्य शून्य हो गए ?
सीता की तरफ से सारे वचन निभाये गए
पर आप जानकीवल्लभ होकर भी हूक दे गए ,
आप उदाहरण बने
ईश्वर रूप में पुत्र रूप में
भाई रूप में राजा रुप में
सिर्फ पति रूप में ही चूक दे गए ।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 16 – 06 – 2017 )