पता न यादों का है ठिकाना
पता न यादों का है ठिकाना
मगर लगा रहता आना जाना
हरेक पल को सँजो के रखतीं
है इनका कितना बड़ा खजाना
न बात कोई किसी से कहतीं
न शोर करतीं हैं शांत रहतीं
है खेल इनका मगर निराला
कभी रुलाना कभी हँसाना
.
पता न यादों का है ठिकाना
गवाह हैं एक- एक पल की
यही कहानी कहेंगी’ कल की
मगर रहेगा ये अंत ही बस
कभी तो’ पाना कभी गँवाना
पता न यादों का है ठिकाना
सजाती तनहाइयाँ हमारी
कभी उड़ा लेतीं नींद सारी
लगा कभी जब वो लेती डेरा
है’ काम जिनका हमें सताना
पता न यादों का है ठिकाना
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद(उ प्र)