पता नहीं चलता
तारीख बदल जाती है
और
मन की आंखों को पता नहीं
चलता
जिन्दगी गुजर जाती है
एक लम्हे की तरह और
वक्त को पता नहीं
पड़ता
मैं चल रही हूं या
रास्ते के किसी मोड़ पर
पैरों को बांधकर
मन को थामकर
खुद को सम्भाल कर
खड़ी हूं
यह कभी मुझे तो
कभी मेरे पैरों के नीचे
आती जमीन को
पता नहीं चलता।
मीनल
सुपुत्री श्री प्रमोद कुमार
इंडियन डाईकास्टिंग इंडस्ट्रीज
सासनी गेट, आगरा रोड
अलीगढ़ (उ.प्र.) – 202001