Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
29 Jul 2016 · 3 min read

पढ़कर कोई कलेक्टर तो बनना नहीं

कम्प्यूटर के दौर में हम जितनी तेजी से आगे बढ़ते जा रहे है, उतनी ही तेजी से हमारी शिक्षा के पारंपरिक तौर-तरीके व साधन हमसे दूर होते जा रहे है. बचपन में सरकंडे या बांस की एक पोर के लिए दिन भर भटकने या लाला की दुकान से 10 पैसे की एक पोर और 5 पैसे में स्याही की टिकिया खरीद लाने के बाद पहले कलम बनाने और स्याही की टिकिया को घोल कर कुछ नया करने की लालसा मन में जागती थी, वह आजकल कम्प्यूटर के कीबोर्ड पर कहां. पहले पेंसिल-कॉपी, स्लेट-बत्ती पर लिखते-लिखते जरूरी हो जाता था कि तख्ती पर लिखना, ताकि लेखन में सुधार हो, क्योंकि आपके लेखन से आपका व्यक्तित्व झलकता है. तख्ती पर लिखना और फिर उसको मिटाने के लिए चिकनी मिट्टी की जरूरत से अहसास होता था कि जिंदगी में कुछ कर गुजरने के लिए मेहनत बहुत जरूरी हो जाती है. लेकिन आजकल ऐसी चीजों की आवश्यकता ही नहीं होती, फिर लिखने के लिए आपके पास पेन के अलावा कम्प्यूटर जो उपलब्ध होता है और जब अपनी इच्छा पलक झपकते ही पूरी हो, तो मेहनत की क्या जरूरत. स्कूल के समय की एक और बात याद आती है, पहाड़े याद करना, जो आजकल शायद ही किसी बच्चे को सिखाए जाते हो. पहले गुणा-भाग करना हो, जोड़-घटाव, बगैर पहाड़े याद किए बिना गणित का कोई सवाल हल करना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन सा था. जिसने पहाड़े याद किए मान लीजिए, वह खुद कम्प्यूटर हो गया. लेकिन आजकल बच्चों के दिमाग पर पहाड़ों की जगह कैलकुलेटर ने अपना कब्जा जमा लिया है, जरा भी गणितीय सवालों को हल करना हो, तो कैलकुलैटर हाजिर है, जो कम्प्यूटर के साथ-साथ मोबाइल में भी मौजूद रहता है. अब खुद ही सोचिए हमने क्या किया, सभी कामों को करने के लिए जब हमारे सामने हर संसाधन उपलब्ध है, तो हम आलसी क्यों नहीं होंगे. अब न किसी को सरकंडे की पोर की जरूरत है और न ही स्याही टिकिया घोलने में समय लगाना पड़ता है. इसके साथ ही पहाड़ों को याद करने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता. इन सबके परिणामस्वरूप दिमागी कसरत की तो बात ही भूल जाइए. जब दिमाग के पास कुछ करने के लिए बचा ही नहीं तो वह कही तो अपना समय लगाएगा ही, फिर चाहे खुराफत ही सही. और अब तो शिक्षा प्रणाली को इतना आसान बनाया जा रहा है कि फेल होने की गुजांइश ही नहीं बचती. पहले कम से कम फेल होने के डर से बच्चों में थोड़ा बहुत पढऩे की मजबूरी तो होती ही थी, लेकिन अब जब फेल ही नहीं होना तो क्या करना अपना दिमाग खराब करके. वैसे भी पढ़कर कोई कलेक्टर तो बनना नहीं है. अब तो सब कुछ पता है, इस देश में कैसे बहुत कम पढ़े-लिखे ज्यादा पढ़े-लिखों पर राज करते है. फिर हमको तो राज करना है, ना की किसी की चाकरी. कुल बात यह है कि हम अपनी पुरानी शिक्षा प्रणाली को दरकिनार करते हुए कैसे दावा करते है कि हम सबसे बेहतर होने की दिशा में प्रयास कर रहे है. नए अविष्कारों को महत्व मिलना चाहिए, लेकिन इतना भी नहीं कि उसको अपनाने की धुन में अपनी परम्पराएं और अपना अस्तित्व ही गुम हो जाएं.

Language: Hindi
Tag: लेख
1 Comment · 838 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
पिया मोर बालक बनाम मिथिला समाज।
पिया मोर बालक बनाम मिथिला समाज।
Acharya Rama Nand Mandal
प्रिये का जन्म दिन
प्रिये का जन्म दिन
विजय कुमार अग्रवाल
जिस्म झुलसाती हुई गर्मी में..
जिस्म झुलसाती हुई गर्मी में..
Shweta Soni
मेरी घरवाली
मेरी घरवाली
ऐ./सी.राकेश देवडे़ बिरसावादी
जीवनदायिनी बैनगंगा
जीवनदायिनी बैनगंगा
ओमप्रकाश भारती *ओम्*
अब ना होली रंगीन होती है...
अब ना होली रंगीन होती है...
Keshav kishor Kumar
हे🙏जगदीश्वर आ घरती पर🌹
हे🙏जगदीश्वर आ घरती पर🌹
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
..
..
*प्रणय*
जब साथ छोड़ दें अपने, तब क्या करें वो आदमी
जब साथ छोड़ दें अपने, तब क्या करें वो आदमी
gurudeenverma198
Kya ajeeb baat thi
Kya ajeeb baat thi
shabina. Naaz
जीवन की धूप-छांव हैं जिन्दगी
जीवन की धूप-छांव हैं जिन्दगी
Pratibha Pandey
മുളകൊണ്ടുള്ള കാട്ടിൽ
മുളകൊണ്ടുള്ള കാട്ടിൽ
Otteri Selvakumar
जुते की पुकार
जुते की पुकार
डॉ विजय कुमार कन्नौजे
मुस्कुराहट खुशी की आहट होती है ,
मुस्कुराहट खुशी की आहट होती है ,
Rituraj shivem verma
मायने मौत के
मायने मौत के
Dr fauzia Naseem shad
‘’The rain drop from the sky: If it is caught in hands, it i
‘’The rain drop from the sky: If it is caught in hands, it i
Vivek Mishra
स्पर्श
स्पर्श
Ajay Mishra
दुनिया की यही यही हकीकत है जिसके लिए आप हर वक्त मौजूद रहते ह
दुनिया की यही यही हकीकत है जिसके लिए आप हर वक्त मौजूद रहते ह
Rj Anand Prajapati
मां
मां
जितेन्द्र गहलोत धुम्बड़िया
नया साल
नया साल
umesh mehra
विधाता छंद (28 मात्रा ) मापनी युक्त मात्रिक
विधाता छंद (28 मात्रा ) मापनी युक्त मात्रिक
Subhash Singhai
"समाज विरोधी कृत्य कर रहे हैं ll
पूर्वार्थ
ज़ब तक धर्मों मे पाप धोने की व्यवस्था है
ज़ब तक धर्मों मे पाप धोने की व्यवस्था है
शेखर सिंह
इन आँखों ने उनसे चाहत की ख़्वाहिश की है,
इन आँखों ने उनसे चाहत की ख़्वाहिश की है,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
पीड़ा थकान से ज्यादा अपमान दिया करता है ।
पीड़ा थकान से ज्यादा अपमान दिया करता है ।
महेश चन्द्र त्रिपाठी
3235.*पूर्णिका*
3235.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
स्वामी विवेकानंद ( कुंडलिया छंद)
स्वामी विवेकानंद ( कुंडलिया छंद)
डाॅ. बिपिन पाण्डेय
जिंदगी
जिंदगी
अखिलेश 'अखिल'
"सावधान"
Dr. Kishan tandon kranti
International Hindi Day
International Hindi Day
Tushar Jagawat
Loading...