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28 Dec 2020 · 1 min read

पञ्चचामर छंद

#पञ्चचामर_छंद (वार्णिक)
१२१ २१२ १२१ २१२ १२१२

रहे सुखी सभी यहाँ प्रसन्नता अथाह हो।
विहान प्रेम का खिले यही महान चाह हो।।

समानता मिली नहीं विपन्नता विचार में।
विकार ही विकार है खड़े सभी कतार में।
स्वभाव में उजास का यहाँ सदा प्रवाह हो।
विहान प्रेम का खिले यही महान चाह हो।।

विचार खिन्न है पड़ा प्रपंच ही प्रपंच है।
मनुष्य वक्ष में सजीव स्वार्थ का सुमंच है।
जला मशाल सत्य का विचार में प्रवाह हो।
विहान प्रेम का खिले यहीं महान चाह हो।।

पं.संजीव शुक्ल ‘सचिन’

Language: Hindi
1 Like · 1 Comment · 326 Views
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