न होता मेरा वास्ता मयकदों से।
गज़ल
122…..122….122…..122
न होता मेरा वास्ता मयकदों से।
प्रिये पी जो लेते तुम्हारे लबों से।
जो साकी न होती तो मैं जी न पाता,
निकल मैं न पाता कभी भी गमों से।
तुम्हें भूलने की ही कोशिश में मैंने,
बनाया है रिश्ता सनम मयकशों से।
पता जानने को तुम्हारा सुख़नवर,
जुड़ा मैं अदब बेअदब महफिलों से।
मुझे प्यार करने की तुमसे तमन्ना,
न खेलो मेरी जाँ मेरी हसरतों से।
तुम्हें सोचकर होती है दिल में हलचल,
मुझे डर नहीं अब कोई जलजलों से।
मैं प्रेमी तुम्हें पाऊंगा प्यार से ही,
नहीं वास्ता है मेरा नफरतों से।
…..✍️प्रेमी