*न हों बस जैसा हों*
न हार हों, न जीत हों
बस प्रेम का संचार हों।।
न दिन हों, न रात हों
बस सूरज-चाँद का प्रकाश हों।।
न लालच हों, न लूट हों
बस ईमानदारी का भाव हों।।
न जात हों, न पात हों
बस सभी का सम्मान हों।।
न पूतना हों , न कैकयी हों
बस माँ यशोदा जैसा लाड हों।।
न रावण हों, न कंस हों
बस राम-कृष्ण जैसा अवतार हों।।
न डर हों, न अभिमान हों
बस निडरता जैसा स्वभाव हों।।
न टोटका हों, न अंधविश्वास हों
बस आध्यात्मिकता का मन में वास हों।।
न आमिरी हों, न ग़रीबी हों
बस समानता का अधिकार हों।।
न धूप हों, न छाँव हों
बस पेड़-पौधों का विकास हों।।
न ईर्ष्या हों न घृणा हों
बस खुशी का प्रभाव हों।।
न राजा हों न भिखारी हों
बस न्याय के देवता जैसा अधिकारी हों।।
न अबला हों, न वेचारी हों
बस सौंदर्यता से परिपूर्ण नारी हों।।
न ऊँचाई हों, न गहराई हों
बस माँ शेरावाली जैसी चढ़ाई हों।।
न शोर हों, न थहराव हों
बस शेरनी जैसा सिंहावलोकन हों।।
न खुशी हों, न गम हों
बस मनोरंजन जैसा माहौल हों।।
न फूल हों, न काँटे हों
बस बाग़ीचा सा परिवार हों।।
😇डॉ॰ वैशाली✍🏻