न फैला हाथ तू अपना ज़रा सम्मान पैदा कर
न फैला हाथ तू अपना ज़रा सम्मान पैदा कर
हमेशा सर उठा के जीने का अभिमान पैदा कर
लुटा दे ज़िन्दगी हिंदोस्तानी आन की ख़ातिर
मेरे भाई तू खुद में इक वही इंसान पैदा कर
ये अम्नो-चैन की दौलत जो चाहे बाँटना सबमें
मेरे मौला यहाँ ऐसे भी तू धनवान पैदा कर
कि सब जुल्म ओ सितम के सामने कमज़ोर दिखते हैं
ये ज़ुल्मत खत्म हों कुछ तरह ईमान पैदा कर
तेरे क़दमों में आकर खुद करे सजदा तेरी मंज़िल
तु अपने हौसलों में यार इतनी जान पैदा कर
जहाँ तेरे कदम मेरे कदम का साथ दे पाये
ऐ मेरे हमसफ़र ऐसा कोई सोपान पैदा कर
मिला क्या है अभी तक इस लड़ाई और झगड़े में
मुहब्बत से सजा गुलशन न तू शमशान पैदा कर
सियासत शहंशाह अब तक कई तूने दिए लेकिन
बस अब तू मुल्क में नेता नहीं दरबान पैदा कर
तेरे ही वास्ते ये दौर ये ऊंचाइयां ‘माही’
तु अपने दिल की धरती से नए अरमान पैदा कर ।।
यही इक आख़िरी ख्वाहिश है ‘माही’ की मिरे मौला
जो इसकी शान है सब में वही तू शान पैदा कर
माही