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29 Apr 2021 · 1 min read

न जाने क्यो

न जाने क्यो आज अपनत्व कही
गुमसुम,गायब सा हो गया हैं।

हम सभी सभी को चाहिए
पर देने को कोई तैयार ही नही
अपनेपन को आज कोई दिखाता ही नही
कही गुमसुम जैसे हो गया हैं।

न जाने क्यो आज अपनत्व कही
गुमसुम,गायब सा हो गया हैं।

मशीन सी जिंदगी की भागमभाग हो गई
इंसानियत तो जाने कहाँ गुम हो गई
अपनो से ही दूरियां अब हो गई
किस्मत न जाने किस मोड़ पर ले गई।

न जाने क्यो आज अपनत्व कही
गुमसुम,गायब सा हो गया हैं।

संदेश भी अब बोझ सा लगने लगा
फुर्सत नही अब इंसान बोलने लगा
कभी मिलेंगे जरूर बस कहने लगा
जीवन बस भागमभाग में चलने लगा।

न जाने क्यो आज अपनत्व कही
गुमसुम,गायब सा हो गया हैं।

साथ साथ रहते भी मिलना नही होता
अब एकदूसरे को पूछा ही नही जाता
समय से अब घर आया नही जाता
नोकरी को सब कुछ अब माना हैं जाता।

न जाने क्यो आज अपनत्व कही
गुमसुम,गायब सा हो गया हैं।

अपनो से भी अब तो बस मिलना नही होता
आना हमारे घर अब तो कहना नही होता
अपनत्व तो अब रहा नही मनुहार नही होता
कोई रूठे तो रूठे अब मनाना भी नही होता।

न जाने क्यो आज अपनत्व कही
गुमसुम,गायब सा हो गया हैं।

सभी को अब अकेलापन सताने लगा है
फिर भी अहंकार आगे आने लगा हैं
अपने तो अपने होते है मानने लगा है
पुरानी रीत ही अच्छी मानने लगा है।

Language: Hindi
2 Comments · 210 Views
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