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4 Sep 2021 · 1 min read

न जाने क्यूँ

न जाने क्यूँ अचानक कोई अनजाना अपना सा लगता है ,
कभी-कभी खुद अपना अज़ीज़ भी बेगाना सा लगता है ,

क्यू्ँ मैं अपनों की भीड़ में खुद को अकेला पाता हूं ,
क्यूँ मैं गैरों को खुश देखकर खुद खुश हो जाता हूं ,

क्यू्ँ मेरा एहसास मुझे अजनबियों के पास लाता है,
क्यूँ कभी कभी मजबूर हो अपनों से दूरियाँँ बनाता है,

दुश्मनों की नफ़रत के ज़ख़्म वक्त गुज़रते भर जाते हैं
अपनों की फितरत के ज़ख़्म वक्त गुज़रते गहराते हैं,

गर्दिश- ए – दौराँ की पशोपेश में ज़िंदगी गुजारता रहता हूं ,
शिद्दत -ए -एहसास के मायने समझने की कोशिश करता रहता हूं ,

,

Language: Hindi
7 Likes · 8 Comments · 229 Views
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