नज़्म/लगता है बादल नाराज़ हैं आज-अक्टूबर मास
लगता है बादल नाराज़ हैं आज
सूरज को ढक दिया बादलों ने
हवाओं की उंगलियां पकड़कर
ज़ोर ज़ोर से पिघल रहे हैं देखों
दरख़्तों को भी डरा रहे हैं
धमकी दे रहे चौतरफ़ा बहाने की
पँछी परिंदे जिनावर हैरान हैं सब
बा मुश्किल जाँ बचा रहे हैं
तरबतर हो गए हैं सबके घरौंदे
बिजलियों को भी गुमाँ है आज
जंगलों ने कानों पे हाथ रक्खा हुआ है
दरिया नाले उरूज उरूज जवां हो गए
धरती को काटते हुए अना में हैं
कैसा कहर बरपा है देखो उत्तर में
बर्फीले पहाड़ भी कमज़ोर पड़ गए
हवाओं ने तोड़ डाला उनको टुकड़ो में
महीन महीन कर डाले बर्फ़ के टुकड़े
दरख़्तों की डालियों के बाल पकड़कर
इधर उधर घुमा रही हैं हवाएँ उन्हें
ये बरसात रुत के बाद का आलम है
लगता है बादल नाराज़ हैं आज……
~~अजय “अग्यार