नज़र अपना निशाना जानती है
आदाब दोस्तो! दो क़त्आ आप सबको नज़्र-
1.
जो अपना सब गँवाना जानता है
वो अपना हक़ भी पाना जानता है
फँसाओगे उसे क्या जाल में तुम
जो हर इक ताना बाना जानता है
2.
किसी पे क़ह्र ढाना जानती है
तो महफ़िल भी सजाना जानती है
न बातों से इसे तुम बर्गलाओ
नज़र अपना निशाना जानती है
-‘ग़ाफ़िल’