नौका विहार
प्रेम की नौका
कविता की नदी में
बहने के लिये होती है
दूसरा तट छूने के लिये नहीं ।
फिर भी नाव के साथ जुडे़ चप्पू
तुम नदी को प्रपात को बनने के पूर्व
नौका को सहारा देकर
किनारे लगा देना कहीं ।
मैं नदी में बहती नौका को
कुछ क्षण के लिये प्रपात बनाकर
नहीं चाहता क्षणिक सुख जो
नौका को धुंआधार कर दे वहीं ।
मेरी कामना है कि
घाट और पाट हो जहाँ
चप्पू नाव को थामना वहाँ
जहाँ बिराजे हों महीं ।
पावन धरातल पर हमेशा
युगों युगों से आज भी
बँधी नावें जुड़ी नद से
रस रंग को स्वर दे रहीं ।