नौकरी
मैंने उसे देखा वो काम में खोया
रात भर जाग कर पूरी नींद ना सोया
आंखे अभी बोझिल थी, भौंहे अब भी चढ़ी हुई
बचे काम से उसकी जैसे, अब भी हो ठनी हुई
होठ सूखे थे उसके, और कंठ भी प्यासे थे
दिमाग सन्न था उसका, शब्द भी रूहासे थे
पेशीयाँ परेशान जैसे, ऐठन से हो भरी हुई
अस्थियां भी टूटने की, हो रास्ते में अड़ी हुई
रात का तीसरा प्रहर भी बीतता है जा रहा
तय समय की बात जैसे याद हो दिला रहा
काम पूरा ना हुआ जो, घर वो न जा पाएगा
अपनी नन्ही सी परी को, आज भी ना देख पाएगा
कल पूछा था परी ने उससे, शाम को तुम कब आओगे?
गोद में अपने बैठा कर, क्या आज रोटी तुम खिलाओगे ?
कई दिन हुए पापा, आपको देखा नहीं
खिलौने के साथ अब, दिल मेरा लगता नहीं
माँ कहती हैं रोज़ रोज़, तुम देर रात को आते हो
मुझको सोते देख कभी तुम, तनिक भी नहीं उठाते हो
दो क्षण को पलक जो झपकी, सपने में ये देख लिया
थके हुए नज़रों ने जैसे, चन्दन को हो लेप लिया
पुरे बदन में बिजली दौड़ी, काम में वो जुट गया
जाने के पहले सभी वो , काम सारे कर गया
खड़ा हुआ वो बोला खुद से, अच्छा अब मैं चलता हूँ
आगे दो दिन की छुट्टी है, परी संग बिता के आता हूँ