नेता
मौसम के ढंग ज्यों बदलने लगे हैं,
वे भी अपना तेवर बदलने लगे हैं।
जाना है उन्हें जनता की अदालत में,
मुखौटो पर फिर से रंग चढ़ने लगे है।
कुर्सी बचाने की मशक्कत में दोस्त,
वे जोड़-तोड़कर दल बदलने लगे हैं।
बयार के संग बह रहे हैं सभी,
नए गठबंधन जोर पकड़ने लगे हैं।
कैसे कर ले आप पर यकीन हम सभी,
वादे करके सब यहां छलने लगे हैं।
बहुत गल चुकी है अब तक दाल तुम्हारी,
साजिश तुम्हारी सभी समझने लगे हैं।
फैसला होना है उनके भवितव्य का,
वे अपने आराध्य को रटने लगे हैं।
प्रतिभा आर्य
चेतन एनक्लेव अलवर
(राजस्थान)