नूतन संरचना
बजे जब मन की मधुर वीणा
उठे जब तन में कोई तृष्णा
हृदय के तार हो झंकृत
हो नूतन स्वरूप संरचना I
प्रकृति का हो सान्निध्य
मन रहे न अनमना
चतुर्दिक पुष्प हों पुष्पित
हो नूतन स्वरूप संरचना I
बहती कलकल धारा हो
संग प्रियतम मनमोहक सजना
मेघ बरसें जब अनवरत
हो नूतन स्वरूप संरचना I
बसंती बयार बहती हो
रंगोली सजे अँगना
कपूर की महक घर में फैले
हो नूतन स्वरूप संरचना I