नुमाइश
नज़र जिधर-जिधर दौराऊं
नुमाइश ही नुमाइश
नज़र आया करता हैं,
घर हो या बाजार
मंदिर मस्जिद या मजार
अब तो आलम यह है
श्मशान या कब्रिस्तान भी
नुमाइश केंद्र बन चुका है;
क्या नेता क्या अभिनेता
चोर सिपाही या जनता
नुमाइश से परे कोई नहीं,
बस फर्क है इतना
कोई कम तो कोई ज्यादा
अब इससे बचा कोई नहीं।