नील पदम् के दोहे
मनवा आज उदास है, जैसे बीच मसान,
जगा जागरण जोग सा, जाग गया इंसान ।
ज्ञानी ये कहते खर्च कर, जैसे बहाया पानी,
लेकिन एक दिन आएगा, लेगा बदला पानी ।
जाग रहा है रात को, जाग रहा है दिन,
साँसों की चिंता नहीं, पैसे रहा है गिन।
कोई महल न काम का, इतना लीजो जान,
यहीं धरा रह जाएगा, निकल जायेंगे प्रान ।
साँसें भरी हों आस में, तो सब कुछ होगा पास में,
जब सब कुछ होगा पास में, तब भी होगा आस में ।
(c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव “नील पदम्”