नींदें उड़ाता कौन है
चुपके’ चुपके रात में यूँ आता’ जाता कौन है
रोज आकर स्वप्न में नींदें उड़ाता कौन है
था मुझे विश्वास जिस पर दे वही धोखा गया
आस फिर से इक नई दिल में जगाता कौन है
घाव मुझको जिन्दगीं से कुछ मिले तो हैं, मगर
छेड़कर अब दर्द मेरा ये बढाता कौन है
बाग में कारीगरी होती दिखी हमको नहीं
फिर वहाँ पर फूल कलियों को बनाता कौन है
जुल्फ की काली घटाएँ छा रहीं रुखसार पर
चुपके’ चुपके चाँद सा चेहरा दिखाता कौन है
खिड़कियों से बंद पलकें जाने’ क्या हैं देखती
हौले’ हौले प्यार से ये मुस्कुराता कौन है
लग रही सुनसान सी हमको गली ये आपकी
फिर हमें आवाज देकर यूँ बुलाता कौन है