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3 Jun 2022 · 1 min read

निस्वार्थ पापा

पापा मेरे तुम वीर हो, गुजरे हो तुम जिस दौर से
तुम शांत चित्ता दृण सुरेशा पर लगते हो मुझको चोर से
तुम व्यथा को हो छुपाए कि हम ना तनिक चिंता करें
और सोच कर के मैं व्यथित कि क्या हो तुम मन में धरे

तुम ढूंढ़ते हर रोज हो खुशियां जो हमको बांध ले
पर हम नहीं समझे कभी कि हम तुम्हारा साथ दें
तुमने सिखाया है सदा बोलो हकीकत की जुबां
पर थाम करके दुख का पहलू हमसे न तुमने कुछ कहा

तुम लिप्त रहते सोच में, किसके लिए? मेरे लिए
तुमने है छोड़ा शौक अपना और खर्चा सब मेरे लिए
तुमसे है कहना बस यहीं मैं जानता हूं अब तुम्हें
मैं बीज था अब वृक्ष हूं तूने ही सींचा है मुझे।

© शुभम शर्मा ‘शंख्यधार’
मो० पूर्वी गढ़ी, खुटार
शाहजहांपुर (उ० प्र०)

6 Likes · 3 Comments · 498 Views
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