निष्ठुर पिता
#निष्ठुर पिता#
उन्हें घर का खाना, हमें सिर्फ ‘कमाना’……. ही रहने दो।
उन्हें शीतल छाँव, हमें ‘तपती धूप’………..ही रहने दो।
उन्हें ममतामयी माँ, हमें ‘निष्ठुर’ पिता…….ही रहने दो।
उन्हें भारत माँ, धरती माँ, प्रकृति माँ जो कहे….कहने दो,
गिला नहीं कोई हमें उनसे, मशहूर उन्हें मुबारक हो
हमें तुम गुमनाम…….ही रहने दो।।
अंकुरित हुए हैं जो अभी,
धूप की ज़रूरत होगी उन्हें कभी,
तो ये छाँव……………..क्या करेगी।
मुकाबला करना होगा जब आंधियों से उन्हें ,
ये कोमलता……………क्या करेगी।
छलेगी जब ये ज़ालिम दुनियां उन्हें,
तब ये मासूमियत………क्या करेगी।
उन्हें ममतामयी माँ, हमें ‘निष्ठुर’ पिता…….ही रहने दो।
उन्हें घर का खाना, हमें सिर्फ ‘कमाना’……. ही रहने दो।
-डॉ. बी. सी. रेगर, सुखरिया, ‘साहिल’
सहायक आचार्य,
रक्तकोष विभाग,
र. ना. टै. आयुर्विज्ञान महाविद्यालय,
उदयपुर
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