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23 May 2024 · 1 min read

निश्छल प्रेम की डगर

निच्छल प्रेम की डगर

निश्छल प्रेम की डगर अति सीधी
जहाँ तनिक भी व्यापार नहीं।
राह में आये काँटे, चाहे आये पत्थर घनघोर सभी।
प्रेम के भाव को ना बदल सके,चाहे ज़ोर लगाले कितना कोई और।
सबरी का भाव निश्छल था
प्रभु का मन मोह लिया।
हनुमान बड़े अनुरागी
जिन्हें राम धुन लगे अति प्यारी।
राधा का प्रेम निश्छल था अपने ही हाथों सर्वस्व सौप दिया।।
प्रेम में पीड़ा हज़ार,निश्चल प्रेम से ना जीत सका संसार।
निश्चय बुद्धि, मन एकाग्र जीत सकोगे तब संसार।
प्रेम में काटें हज़ार फिर भी पथिक करते इसे पार।।
निश्छल प्रेम बड़ा ही सरस प्रेमी करते है इसे प्रणाम
प्रेमी करते इसे प्रणाम ।।

डॉ अर्चना मिश्रा
स्वरचित मौलिक रचना

Language: Hindi
44 Views

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