निर्मम रिश्ते
))))निर्मम रिश्ते((((
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बड़े ही रौबदार आवाज में शारदा देवी ने बहु को बुलाया ; क्यों बे कलमुँही अभी तक चाय नहीं बनी सुबह के सात बजने को आये ।
दिन आये तक बिस्तर तोड़ती रहती है और जैसे ही घर के मर्दों को देखती है कोई न कोई काम लेकर बैठ जाती है। बहुत हो गया तुम्हारा यह नाटक…
शारदा देवी के रौद्र रूप को देख मधु माघ महीने में जैसे गाय कापती है वैसे ही कापने लगी।
वैसे तो यह हर दिन की दिनचर्या थी मधु के लिए किन्तु आज उसकी सास कुछ जयादा ही गुस्से में लग रही थीं और वैसे भी विवेक आज घर पे था ।
विवेक अपने माँ का बहुत ही आदर करता था सही मायनो में उन्हें पुजता था, किसी के द्वारा भी माँ को कष्ट पहुंचे उसे कदापि स्वीकार नहीं था।
इसी बात का फायदा उठाकर शारदा देवी जब भी विवेक घर पे होता मधु को प्रताड़ित करने का एक मौका भी जाया नहीं होने देती।
मधु एक अच्छे सुसंस्कारी परिवार की दो भाईयों के बीच इकलौती लड़की थी पिता हरि प्रसाद जी शिक्षक थे माँ सुगन्धा देवी एक कुशल गृहिणी थीं एक भाई महेन्द्र उससे बड़ा जबकी सुरेंद्र उससे छोटा था। गांव में आज भी बाप के लिए बेटियां बोझ हीं होती हैं अतः लड़कों से पहले बेटी का हाथ पीले कर बीदा कर देने का रिवाज बदस्तूर कायम है। मधु हाईस्कूल की परीक्षा बड़े ही अच्छे नंबरों से पास कर गई थी वह गृह कार्य में दक्ष व संगीत कला में निपुण थी। उसने भी जीवन में अपने लिए उच्च शिक्षा प्राप्त करने का व संगीत में एक आयाम स्थापित करने का लक्ष्य निर्धारित कर रखा था किन्तु हमारे समाज में फैली भ्रान्तियों के कारण न जाने कई मधुओं के सपने सवरने से पहले ही धूलधूसरित हुये होंगे।
आज इक्कीसवीं सदी में भी हम लड़कियों से उनके सपनो के बारे में पुछना गवारा नहीं समझते।
उनके अरमानों की बलि चढाने का कोई भी मौका नहीं छोड़ते। आज भी हमारी यही दकियानूसी सोच हमारे मन मष्तिष्क पर हावी हैं कि लड़कियां ज्यादा पढ लिख कर क्या करेंगी ।
जैसे ही मधु ने हाईस्कूल की परीक्षा उतीर्ण की आनन फानन में थोड़ी बहुत जाच पड़ताल के बाद विवेक के साथ बड़े भाई महेंद्र से पहले शादी कर दी गई।
नारी त्याग, तपस्या, दया, बलिदान, समर्पण की प्रतिमूर्ति ऐसे ही नहीं मानी जाती अपना सर्वस्व खोकर भी दो कुलों की मर्यादा को अपने अस्तित्व में समेट कर हसती रहती है जैसे उसे इन सब बातें से कोई फर्क हीं नहीं पड़ता।
मधु ब्याह कर विवेक के घर आई एक दो वर्ष तक जब तक दान दहेज का बोलबाला रहा सब ठीक ठाक चलता रहा। जैसे ही पीहर से सौगात आने कम हुये जैसै मधु पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। आये दिन उसकी सास शारदा देवी प्रताड़ित करतीं जली कटी सुनाती जब इससे भी उनका जी नही भरता तो विवेक को इतना आक्रोशित करतीं की वो जानवरों की भाती उसे धून देता।
आज फिर वहीं डर उसे अन्दर तक कपाये जा रहा था जबकि आज भी मधु चार बजे भोर से ही उठ कर समुचे घर का काम निपटा कर नहा धो कर पूजा करने के बाद दूध वाले का राह देख रही थी बीना दूध का चाय कैसे बना दे अगर अभी तक दूधवाला नहीं आया तो उसमें इसकी क्या गलती।
शारदा देवी पुरे घर को सर पे उठा कर उसे कोसे जा रही थीं उसे तो जली कटी सुना हीं रही थीं साथ ही साथ उसके माँ बाप को भी सुना रही थीं।
यह सब सुनकर विवेक फिर से एक हिंसक पशु के भाती मधु पर टूट पड़ा लात मुक्के घूस्सो से अमानवीयता की हद पार करता रहा।
इधर मौके का लाभ उठाकर शारदा देवी ने रशोई घर में गैस का बटन चालू कर के छोड़ दिया उनकी मंशा आज मधु से छुटकारा पाने की थी ताकि विवेक की दुसरी शादी करा कर फिर से दहेज ऐंठा जा सके।
यह प्रकृति की कैसी विडंबना है एक नारी की सबसे बड़ी शत्रु इस समाज में हमेशा से नारी हीं रही है , सदियों से नारी नारी के द्वारा ही परोक्ष या अपरोक्ष रूप से उत्पीड़ित होती रही है ऐसा नहीं है कि इसमें मर्दों की भूमिका नहीं रही हो किन्तु हमेशा ही नेपथ्य में किसी न किसी स्त्री ने ही इन घटनाओं का निर्देशन किया है।
विवेक से छुटने के बाद मधु रसोई में चाय बनाने जैसे ही गई उसे गैस की बदबू महसूस हुई तुरंत उसने गैस का बटन बंद किया और घर के सारे खिडक़ी दरवाजे खोल दिये ताकि गैस निकल सके।
इस प्रक्रिया में थोड़ी विलंब और हुईं। अब शारदा दैवी आवेश में आकर खुद हीं चाय बनाने चल दीं ताकि बेटे को दिखा सके की बहु कितनी कामचोर है रसोई में जाकर एक छण के लिए वो भुल गई की उन्होंने गैस चालू करके छोड़ दिया था चुल्हे पर चाय की सामग्री पतीले मे चढाकर जैसे ही माचिस जलाया तभी मधु वहां पहुंच गई और धक्का देकर शारदा देवी को रसोई से बाहर कर दिया किन्तु इस प्रक्रिया मे वह खुद झुलस गई।
विवेक तुरंत मधु को लेकर होस्पिटल पहुंचा शारदा देवी आंखो में अश्रु लिए बहू को देखे जा रही थीं आज जिसे वो मारना चाह रही थीं वहीं उनकी प्राण रक्षक बनी।
उन्हे खुद पर ग्लानि और मधु पर स्नेह उमड़ रहा था। कुछ ही दिनों में भधु ठीक होक घर आ गई और यहाँ आकर आज उसे सास नहीं अपितु एक मां मिली जो उसे अपने जान से भी ज्यादा प्यार करने वाली थी।
©®पं.सचिन शुक्ल
नमस्कार।।।।
आप सभी स्नेही मित्रजनों आदरणीय श्रेष्ठ जनों से करबद्ध प्रार्थना है इस कहानी में जो कुछ भी त्रुटि हो कृपा कर इंगित करें । अपना बहुमूल्य सुझाव अवश्य दें ताकि हमारा मार्गदर्शन हो सके।
आपका अपनाः-
….पं.संजीव शुक्ल “सचिन”
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दिल्ली