निर्गुण सगुण भेद
निर्गुण सगुण भेद
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जब चक्षु विकल हो सकल प्रेम को…
तब निर्गुण सगुण भेद मिट जाता है।
निराकार जब साकार ब्रह्म,
बनकर प्रियतम छा जाता है।
ऊर्जा का संचार प्रस्फुटित ,
होकर तब, मन में लहराता है।
जब चक्षु विकल हो सकल प्रेम को…
प्रभुमूरत जब शीतल बयार बन,
मन छू छू कर बहलाता है ।
अश्रुधार बह मन निर्मल तब होता ,
छविमोहनी रूप नयन बस जाता है।
जब चक्षु विकल हो सकल प्रेम को…
वो मीरा का मुरलीधर श्याम हो ,
या सुरदास का कृष्ण कन्हैया हो।
वरदान अमर भक्ति प्रेम का देता ,
वही आत्मज्ञान मोक्ष बतलाता है।
जब चक्षु विकल हो सकल प्रेम को…
अब कहो, कहाँ पर संशय हैं ,
यदि कर्मकांड दुरूह अतिशय है।
तो श्रद्धा प्रेम से भज लो प्रभु को,
जानो अभीष्ट प्राप्ति निःसंशय है।
जब चक्षु विकल हो सकल प्रेम को…
भटको न कभी तुम निर्गुण सगुण जाल,
बस सद्गुरु सद्गुण का देखो कमाल।
जो तुम चाहो, भीतर मिलिहे पथ पर ,
अहंनाश होता क्षण में,आशा तृष्णा मिट जाता है।
जब चक्षु विकल हो सकल प्रेम को…
मौलिक एवं स्वरचित
मनोज कुमार कर्ण