निरुत्तरित प्रश्न
धरती पर अत्याचार बढा मानवता शर्मिन्दा क्यों हैै
हर वर्ष जला फिर भी रावण जलकर आखिर जिन्दा क्यों हैं
दामिनी दमित क्यों होती है, भामिनी कांपती राहों में
कामिनी तोड़ देती है दम अत्याचारी की बांहों में
क्यों विश्वविजय का वह परचम यूं तार-तार हो जाता है
वह सत्य अहिंसा का नारा क्यूं जार-जार रो जाता है
मानवता शर्मसार हो कर क्यों बिखर पड़ी हैं राहों में
खोकर निजता फिर-फिर बनिता की चीख बदलती आहों में
क्यो वानर से नर बने मनुज का दम्भ सभी भरने वाले
ब्रह्माण्ड अखिल के सकल ज्ञान को मुट्ठी में करने वाले
आधार सृजन को भूल सृष्टि के माध्यम को ठुकराते हैं
मानवता के संवेदों को क्यों चूर-चूरकर जाते हैं
आचार क्षमा का जो बन कर ईसा धरती पर आ जायें
चाहे मूसा इस पृथ्वी पर फिर नवल नीति समझा जायें
ईमान बनाने की परिभाषा खुद कुर्बानी दिखला जायें
या राम पाठ मर्यादा का आकर के फिर समझा जायें
नर के मन के भीतर स्थित रावण को मृत करना होगा
तब जाकर सच्चाई जीते रावण को जल मरना होगा