निज प्रभुत्व में हैं जीते जो
द्वंद अनेकों पलते देखे,
संवेदनहीन विचारों में ।
मानवता का करें अनादर,
निज प्रभुत्व में हैं जीते जो ।।
भेदभाव की नीति सुहाती,
विश्वासों का गला घोंटते ।
अपने वक्तव्यों से जग में,
संप्रदाय की पौध रोपते ।
मढ़ते हैं आरोप उन्हीं पर,
नित घाव जगत के सीते जो ।।
मानवता का करें अनादर—–
कुटिल मलीन सोच है जिनकी,
व्यक्तित्व बालि सा दिखता है ।
इतिहास सदा इन जैसों को,
कायर, कपूत ही लिखता है ।
घोल रहे विष उन्मादों का,
अमृत यहाँ स्वयं पीते जो ।।
मानवता का करें अनादर—
सत्य रौंदते झूठ तले जो,
झूठों को सच्चा बतलाते ।
धर्म – जाति के अस्त्र थमाकर,
एक – दूसरे को लड़वाते ।
वही कर्म का ज्ञान बाँटते,
हैं सत्कर्मों से रीते जो ।।
मानवता का करें अनादर—
✍अरविन्द त्रिवेदी
महम्मदाबाद
उन्नाव उ० प्र०