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31 Jan 2022 · 1 min read

निगाह

डॉ अरुण कुमार शास्त्री?एक अबोध बालक?अरुण अतृप्त

? निगाह ?

तुझसे निगाह मिला कर पछता रहा हूँ मैं
तेरी गली में आकर डर से घबरा रहा हूँ मैं ।।

भोला सा मुखड़ा लिए क्या आईना दिखाया
सूरत पे मर गया था दिल को लुटा रहा हूँ मैं ।।

एय नाज़नीं हँसीना दिल मेरा मुझको दे दे
गलती हुई जो मुझसे सज़ा पा तो रहा हूँ मैं ।।

मैं आदतन तो आशिक़ हरगिज़ नही बना था
तेरी अदाओं का मारा गश पे गश खा रहा हूँ मैं ।।

तौबा मेरे ख़ुदाया तौबा, लो कान पकड़े मिरे सनम
मुझको कहां इलम था नागिन से टकरा रहा हूँ मैं ।।

तीख़ी तीखी नज़रें और उस पर जुल्फें हैं बल खाती
भूल भुल्लिया भूला इस राह पे अब न आऊँ ।।

देखा देखी इश्क़ का मैं बना था जोगी सन्यासी
ये राह बड़ी कठिन है ये रास्ते हैं अनजाने ।।

तुझसे निगाह मिला कर पछता रहा हूँ मैं
तेरी गली में आकर डर से घबरा रहा हूँ मैं ।।

भोला सा मुखड़ा लिए क्या आईना दिखाया
सूरत पे मर गया था दिल को लुटा रहा हूँ मैं ।।

इस अबोध से बालक के न बस के ये पैमाने
इन्ही राहों पर न जाने कितने हो जाते दिल बेकाबू ।।

1 Like · 3 Comments · 601 Views
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