ना ही था वो ना ही कोई मैं था
ना ही था वो ना ही कोई मैं था
सुबह उठा तो यहाँ की फ़िज़ाओं में ज़हर था
राजनीती हिंदू, मुस्लिम,सिख,ईसाई में व्यस्त थी
राह के चार मुसाफ़िर की मंज़िल एक ही तरफ थी
सफेद रंग के कपड़े ने धर्मो का पाठ पढ़ा दिया
मजहब को ही इंसानो की पहचान बना दिया
रक्त बहा इंसानों का बहशी दरिंदा बना दिया
धर्म के ठेकेदारों ने इंसानियत को ठुकरा दिया
दो धर्म के मिलन को लव जिहाद बता दिया
हिदू,मुस्लिम,सिख,ईसाई,सब आपस में भाई भाई
का नारा भुला दिया