! नारीशक्ति वंदन !
जब आधी है आबादी
और पूरी है जिम्मेदारी
फिर भी एक-तिहाई ही
क्यों है ये भागीदारी ?
महिला शक्ति भी सीमित
सशक्तिकरण भी सीमित
जब दायित्व है असीमित
तब क्यों अधिकार दमित?
ये आश्रय ये आरक्षण
ये महिला सशक्तिकरण
ये सामाजिक न्याय के
ये है सब पहले चरण।
अब नई दुनिया में आज
हो अधिकारों का आगाज
मिले बराबरी को आवाज
ये समानताएं चढ़े परवाज।
सूरज तो निकला ही है
अब बहुत चाँद निकलेंगे
सत्ता,संसद,संस्था,शासन
को शीतल शुचिता देगें।
तुम नही वंदन अभिलाषी
स्वयं की स्वयं चाहे हितैषी
तुम चाहो सम्मान बराबरी
न मातहत आश्रित बेचारी।
नही चाहत में सत्ता-सुख
ना जिम्मेदारियों से विमुख
फूल कभी न सकते चुभ
तू चाहे सत्ता से सब शुभ।
तेरा वेश-परिवेश ही चंदन
सत्ता का बिष करने भंजन
करे जो “नारी शक्ति वंदन”
ऐसी पहल को अभिनन्दन।
~०~
मौलिक एवं स्वरचित: कविता प्रतियोगिता
रचना संख्या-२०: मई, २०२४-©जीवनसवारो.