नारी वेदना के स्वर
कल मुंहअंधेरे सवेरे मुझे पड़ोस से नारी क्रंदन स्वर सुनाई दिया ,
यह किसी घरेलू हिंसा प्रताड़ित गृहणी की वेदना का स्वर था ,
या किसी पुत्र एवं पुत्रवधू द्वारा उपेक्षित मां के आहत् हृदय का स्वर था ,
या किसी बेटी की अपेक्षित आकांक्षाओं एवं अभिलाषाओं के दमन से त्रस्त भावनाओं का स्वर था ,
मैं संवेदनहीन मूकदर्शक बना समाज की मर्यादा परिधि में बंधा नारी विडंबना को देखता रह गया,
संस्कार, संवेदनशीलता, सद्भावना, सहकार ,
सब बातें मुझे भाषण तक सीमित शब्द बन प्रतीत हुईं ,
मैं अपने अस्तित्व से नगण्य अनुभूति से कुंठित लाचार बना यह सब देखता रह गया।