नारी का बदला स्वरूप
बेटी जब शादी करके अपनी, पति संग अपने घर जाती थी।
माता अपनी बेटी को उसके,ससुराल की हर ज़िम्मेदारी बतलाती थी।।
उसके घर की तीन पीढ़ियाँ,अब उस पर निर्भर हो जाती थीं।
घर के हर सदस्य की हरेक जरूरत,बस वही तो पूरी कर पाती थी।।
सबसे पहले उठती थी वो,और सबको सुला कर ही वो सो पाती थी।
हर घर की बहुरानी देखो,घर की दिल की धड़कन कहलाती थी।।
इसीलिए हर नारी अपने घर को,स्वर्ग से सुंदर घर वो बना पाती थी।
और बिना नारी के घर की तुलना,सीमेंट और रेत के घर से की जाती थी।।
अब दौर आ गया पैसे का अब घरवाली नहीं पैसे वाली ही पायी जाती है।
इसीलिए हर लड़के के मन में नौकरी करने वाली की इच्छा पायी जाती है।।
माता के द्वारा बेटी के घर की कल्पना, पति पत्नी के घर से कराई जाती है।
सास ससुर और बाकी रिश्तों से बेटी को दूर रहने की शिक्षा पढ़ाई जाती है।।
डिलीवरी की जिम्मेदारी बहुत बड़ी है, अकेले रह कर उठाई नहीं जाती है।
आज की नारी इन दो पीढ़ियों का पालन करने में खुद को अक्षम पाती है।।
परिवार की परिभाषा तो पति पत्नी या सिर्फ एक बच्चे से ही पूरी हो जाती है।
नतीजन अब घर में बुआ चाची ताई मौसी मामी या बहन,भाभी ना पाई जाती है।।
आज की पढ़ी लिखी नारी बच्चा पैदा करने में असमर्थ पाई जाती है।
अनपढ़ के घर में बच्चों की पैदाइश ऊपर वाले की मर्जी बताई जाती है।।
कहे विजय बिजनौरी नारी भारत के हर घर में लक्ष्मी सी पूजी जाती थी।
आज की नारी कितनी लक्ष्मी कमाती है यह देख कर ही अपनाई जाती है।।
विजय कुमार अग्रवाल
विजय बिजनौरी।