नारी का अपमान न हो, वो सुहाग बना
पदांत- बना
समांत- आग
जीवन का उत्कर्ष, प्रेम और त्याग बना.
सर्वधर्म समभाव सब से, अनुराग बना.
मोह, माया, मत्सर से, नहिं हो, तू प्रेरित,
जीवन बहु-सुखाय, बहु-हिताय, प्रयाग बना.
तीव्र दावानल, बड़वानल से, जठरानल,
जीवन जले न, कुछ ऐसा ही, सुराग बना.
भ्रष्ट, अपकर्ष, निकृष्ट, प्रदूषित भाव सभी,
जल कर, सोना बनें विशुद्ध, वो आग बना.
देव अर्द्धनारीश्वर, में ही’ अब, पुजें सदा,
नारी का, अपमान न हो, वो सुहाग बना.