नारा इंकलाब का फिर से लगाया जाए
स्वतंत्रता की हीरक जयंती, दिल से मनाई जाए
राष्ट्र चेतना की अलख, फिर से जगाई जाए
जन-जन सुभाष बन जाए, प्राण प्रण से जुट जाए
आजाद हिंद फौज को फिर से जगाई जाए
चुनौतियों को सारी, कुचल दिया जाए
नारा इंकलाब का, फिर से लगाया जाए
कहीं पर आतंक है, धर्म और जाति का,
कहीं गहरा हुआ है दंस, विध्वंस का
नफरतों की आग को, जड़ से मिटाया जाए
बटबारे का घाव हम झेल चुके हैं
भरे जख्मों को, हरगिज न कुरेदा जाए
नफरतों की आग को, जड़ से मिटाया जाए
नारा इंकलाब का फिर से लगाया जाए
सावधान देश को, कमजोर करने वालों
हर एक बात को, संप्रदाय में रंगने वालो
टुकड़े टुकड़े देश की, यह सोच रखने वालों
कुटिल चालों को, क्यों ना उजागर किया जाए
नारा इंकलाब का फिर से लगाया जाए
चायना की अक्षम्य हरकत, नज़र अंदाज न की जाए
बीस शहीदों का, बदला लिया जाए
देश सेना के साथ खड़ा है
चीन को सबक सिखाया जाए
नारा इंकलाब का फिर से लगाया जाए
देश का नुकसान हो, ऐसी भाषा हरगिज न बोली जाए
राष्ट्र विरोधियों को सबक, चुन चुन कर सिखाया जाए बातअलगाव की,क्षमा अब न की जाए
नारा इंकलाब का, फिर से लगाया जाए
राष्ट्र चेतना की अलख, फिर से जगाई जाए
आजाद हिंद फौज को, फिर से जगाई जाए