नादानियाँ
धूप मे चलती रही मै
छाँव की तलाश करती रही मैं
इस क्रम मे कभी उल्टा
कभी सीधा पाँव धरती रही मैं
नादानियाँ बहुत थी जीवन में
इसलिए गलत और सही का
फर्क नही समझ सकी मै।
जब ठेस लगी जीवन मे जोर से
तब जाके मेरी आँख खुली
खुशी इस बात की थी मुझे कि
ज्यादा देर नही हुई थी।
वक्त रहते हुए यारों
गिर कर संभल गई मै ।
~अनामिका