नहीं अन्न और जल होगा
आने वाला कल दुनिया में, मुसीबतों का कल होगा
जीवन पर संकट के बादल, संघर्ष यहां पल पल होगा
नहीं मिलेगा पीने पानी , नहीं अन्न और फल होगा
पर्यावरण क्षरण के कारण,ताप से बहुत विकल होगा
चारों ओर अनल होगी, लपटों में विश्व सकल होगा
कहीं रेगिस्तान धरा पर, कहीं भरा जल होगा
नहीं रहेंगे जीव धरा पर,भरा हलाहल होगा
वीता कल अतीत हो गया, वर्तमान भी वीत रहा
आने वाला कल कैसा होगा, नहीं अतीत से सीख रहा
जल जंगल जमीन धरा पर, तेजी से सब सिकुड़ रहे
प्रदूषण बढ़ रहा धरा पर, मौसम के तेवर बदल रहे
कहीं हाड़ कंपाती सर्दी है, कहीं गर्मी बहुत सताती है
वेमौसम पानी पड़ रहा धरा पर, आंधी तट बंध ढहाती है
तूफानों का जोर जग में, जन धन हानि हो जाती है
लगी विकास की होड़ धरा पर,सब अंधे हो कर भाग रहे
जल जंगल जमीन का दोहन, पर्यावरण विगाड़ रहे
जैव विविधता खत्म हो रही,कई जीवों का नामोनिशान मिटा
कल क्या होगा विन सोचे समझे, जीवन का रहा अस्तित्व मिटा
अंधे होकर गर चलेगी दुनिया, महाप्रलय आ जाएगी
जलवायु परिवर्तन से, मानवता संकट में आ जाएगी
आने वाला कल दुनिया में, मुसीबतों का कल होगा
नहीं मिलेगा पीने पानी , नहीं अन्न और फल होगा
सुरेश कुमार चतुर्वेदी