नसीब की चारदीवारी में कैद,
नसीब की चारदीवारी में कैद,
अपने हिस्से का जीवन
जी लेता है आदमी,
कभी अपने तो कभी
अपनों के दुख में रो रो कर
पलकें भिगो लेता है आदमी ……
गुनगुनाते सपनों की
सुनहरी दुनिया में डूबते उतरते ,
अपने अतीत की ओर
झांकता रहता है आदमी,
दिखाता रहे
भले ही मजबूत ख़ुद को
पल- पल मर के भी,
जीता रहता है आदमी……
हिमांशु Kulshrestha