‘नव कुंडलिया ‘राज’ छंद’ में रमेशराज के व्यवस्था-विरोध के गीत
|| ‘नव कुंडलिया ‘राज’ छंद’-1 ||
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दिन अच्छे सुन बच्चे आये
आये लेकर बढ़े किराये ,
बढ़े किराए , डीजल मंहगा
डीजल मंहगा , हर फल मंहगा ,
हर फल मंहगा समझे बच्चे
बच्चे मान इन्हें दिन अच्छे |
–रमेशराज —
|| ‘नव कुंडलिया ‘राज’ छंद’-2 ||
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दिन अच्छे आये हैं कैसे
कैसे जियें बताओ ऐसे ,
ऐसे ही यदि बढ़ीं कीमतें
बढ़ीं कीमतें , बढ़ीं आफ़तें,
बढ़ीं आफ़तें , बनकर डाइन
आये हैं कैसे अच्छे दिन !!
–रमेशराज —
|| ‘नव कुंडलिया ‘राज’ छंद’-3 ||
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खेले नेता कैसी होली
कैसी होली , दाग़े गोली
दाग़े गोली वोटों वाली
वोटों वाली , नोटों वाली
नोटों वाली रँग की वर्षा
कैसी होली खेले नेता ?
–रमेशराज —
|| ‘नव कुंडलिया ‘राज’ छंद’-4 ||
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नेता के हाथों में कट्टा
कट्टा , घर डालर का चट्टा
चट्टा लगा बने जनसेवक
जनसेवक पर चील बाज वक
चील बाज वक सा ही कुनबा
कुनबा के संग हंसता नेता |
–रमेशराज —
|| ‘नव कुंडलिया ‘राज’ छंद’-5 ||
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गन्ना खट्टा राजनीति का
राजनीति का , छद्म प्रीति का
छद्म प्रीति का खेल-तमाशा
खेल-तमाशा करता नेता
नेता धमकाता ले कट्टा
राजनीति का गन्ना खट्टा |
–रमेशराज —
|| ‘नव कुंडलिया ‘राज’ छंद’-6 ||
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” शासन का ये कैसा बादल ?
बादल बढ़ा रहा है मरुथल,
मरुथल निगल गया खुशहाली
खुशहाली से जन-जन खाली,
खाली झोली मिले न राशन
राशन लूट ले गया शासन | ”
(रमेशराज )
|| ‘नव कुंडलिया ‘राज’ छंद’-7 ||
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” अजब व्यवस्था, हालत खस्ता
हालत खस्ता, दिखे न रस्ता,
दिखे न रस्ता, लुटता जन-जन
जन-जन का दुःख लखे शासन,
शासन मूक-वधिर हलमस्ता
हलमस्ता की अजब व्यवस्था ! ”
(रमेशराज )
|| ‘नव कुंडलिया ‘राज’ छंद’-8 ||
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” नेता बोले, वोट हमें दो
वोट हमें दो, नोट हमें दो
नोट हमें दो, तर जाओगे
तर जाओगे, सब पाओगे
सब पाओगे, रम-रसगोले
रम-रसगोले, नेता बोले | ”
(रमेशराज )
|| ‘नव कुंडलिया ‘राज’ छंद’-9 ||
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” लूटें जन की खुशियाँ सब दल
दल-दल में हैं, अब खल ही खल,
अब खल ही खल, अति उत्पाती
अति उत्पाती, अति आघाती,
अति आघाती जन को कूटें
जन को कूटें, खुशियाँ लूटें | ”
(रमेशराज )
|| ‘नव कुंडलिया ‘राज’ छंद’-10 ||
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“आँखें पुरनम, बहुत दुखी हम
बहुत दुखी हम, कहीं खड़े यम,
कहीं खड़े यम, कहीं फटें बम
कहीं फटें बम, चीखें-मातम,
चीखें-मातम, अब ग़म ही ग़म
अब ग़म ही ग़म, आँखें पुरनम | ”
(रमेशराज )
|| ‘नव कुंडलिया ‘राज’ छंद’-11 ||
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” आज़ादी के सपने खोये
सपने खोये , जन – जन रोये ,
जन – जन रोये , अब क्या होगा ?
अब क्या होगा , क्रूर दरोगा !
क्रूर दरोगा संग खादी के
सपने खोये आज़ादी के |
(रमेशराज )
|| ‘नव कुंडलिया ‘राज’ छंद’-12 ||
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” सत्ता का मद आज बोलता
आज बोलता , जहर घोलता
जहर घोलता , जन जीवन में
जन जीवन में , जल में वन में
जल में वन में , नेता के पद
नेता के पद, सत्ता का मद | ”
(रमेशराज )
|| ‘नव कुंडलिया ‘राज’ छंद’-13 ||
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माँगे रिश्वत बाबू – अफसर
बाबू – अफसर , भारी जन पर ,
भारी जन पर , नित गुर्राए
नित गुर्राए , काम न आये
काम न आये , देखो जुर्रत
देखो जुर्रत , माँगे रिश्वत | ”
(रमेशराज )
|| ‘नव कुंडलिया ‘राज’ छंद’-14 ||
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” सत्ता का मद आज बोलता
आज बोलता , जहर घोलता
जहर घोलता , जन जीवन में
जन जीवन में , जल में वन में
जल में वन में , नेता के पद
नेता के पद, सत्ता का मद | ”
(रमेशराज )
|| ‘नव कुंडलिया ‘राज’ छंद’-15 ||
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” तोड़े छत्ता, शहद निचोड़े
शहद निचोड़े , कम्बल ओढ़े
कम्बल ओढ़े , धुंआ करे नित
धुंआ करे नित , हो आनन्दित
हो आनन्दित , जिसकी सत्ता
जिसकी सत्ता , तोड़े छत्ता | ”
(रमेशराज )
|| ‘नव कुंडलिया ‘राज’ छंद’-16 ||
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” नेताजी के रूप निराले
रूप निराले , मद को पाले
मद को पाले , तनिक न डरते
तनिक न डरते , फायर करते
फायर करते , काम न नीके
काम न नीके , नेताजी के | ”
(रमेशराज )
|| ‘नव कुंडलिया ‘राज’ छंद’-17 ||
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जन को खाएं , मौज उड़ायें
मौज उड़ायें , ईद मनाएं
ईद मनाएं नेता – अफसर
नेता – अफसर , धन – परमेश्वर
धन – परमेश्वर अति मुस्काएं
अति मुस्काएं , जन को खाएं |
(रमेशराज )
|| ‘नव कुंडलिया ‘राज’ छंद’-18 ||
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मत जा प्यारे , अफवाहों पर
अफवाहों पर , इन राहों पर
इन राहों पर , वोट – सियासत
वोट – सियासत , छल का अमृत
छल का अमृत जन – संहारे
जन – संहारे , मत जा प्यारे |
(रमेशराज )
|| ‘नव कुंडलिया ‘राज’ छंद’-19 ||
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हरदम अब तो सत्ता के यम
यम गम देते चीखें मातम ,
मातम से हम उबरें कैसे
कैसे हल निकलेंगे ऐसे ?
ऐसे में बदलो ये सिस्टम
सिस्टम लूट रहा है हरदम |
(रमेशराज )
|| ‘नव कुंडलिया ‘राज’ छंद’-20 ||
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” धन पशुओं को पुष्ट करें सब
पुष्ट करें सब ये नेता अब
ये नेता अब , जन को लूटें
जन को लूटें , मारें – कूटें
मारें – कूटें अति निर्बल जो
पुष्ट करें सब धन पशुओं को | ”
(रमेशराज )
|| ‘नव कुंडलिया ‘राज’ छंद’-21 ||
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“छल के माला, सच को ठोकर
ठोकर मारे पल-पल जोकर,
जोकर जिसकी कायम सत्ता
सत्ता जो शकुनी का पत्ता,
पत्ता चल करता सब काला
काला डाले छल के माला | ”
(रमेशराज )
|| ‘नव कुंडलिया ‘राज’ छंद’-22 ||
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” जनता चुनती जाति – रंग को
जाति – रंग को , अति दबंग को
अति दबंग को जीत मिले जब
जीत मिले जब , मद में हो तब
मद में हो तब , नादिर बनता
नादिर बनता , कटती जनता | ”
(रमेशराज )
|| ‘नव कुंडलिया ‘राज’ छंद’-23 ||
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” सदविचार सदनीति यही अब
अब बन डाकू हम सबके सब
हम सबके सब कुण्डल छीनें
कुण्डल छीनें , मारें मीनें
मारें मीनें कर ऊंचा कद
कद का भोग – विचार बना सद | ”
(रमेशराज )
|| ‘नव कुंडलिया ‘राज’ छंद’-24 ||
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” कर परिवर्तन , बहुत जरूरी
बहुत जरूरी , दुःख से दूरी
दुःख से दूरी तब होगी हल
तब होगी हल , चुनें वही दल
चुनें वही दल, खुश हो जन – जन
खुश हो जन – जन , कर परिवर्तन | ”
(रमेशराज )
|| ‘नव कुंडलिया ‘राज’ छंद’-25 ||
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” सद विरोध पर पल – पल हमले
हमले किये असुर ने – खल ने
खल ने चाही वही व्यवस्था
वही व्यवस्था , दीन अवस्था
दीन अवस्था में हो हर स्वर
स्वर पर चोटें सद विरोध पर | ”
(रमेशराज )
|| ‘नव कुंडलिया ‘राज’ छंद’-26 ||
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” इस सिस्टम पर चोट किये जा
चोट किये जा , वीर बढ़े जा
वीर बढ़े जा , ला परिवर्तन
ला परिवर्तन , दुखी बहुत जन
दुखी बहुत जन , मातम घर – घर
चोट किये जा इस सिस्टम पर | ”
(रमेशराज )
|| ‘नव कुंडलिया ‘राज’ छंद’-27 ||
” वीर वही है लड़े दीन-हित
लड़े दीन-हित , तुरत करे चित ,
तुरत करे चित , उस दुश्मन को
उस दुश्मन को , दुःख दे जन को ,
जन को सुख हो , नीति यही है
लड़े दीन-हित , वीर वही है | ”
(रमेशराज )
|| ‘नव कुंडलिया ‘राज’ छंद’-28 ||
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“सौदागर हैं ये इज्जत के
ये इज्जत के , धन-दौलत के
धन-दौलत के , नत नारी के
नत नारी के , औ ‘ कुर्सी के
कुर्सी पर ये ज्यों अजगर हैं
ज्यों अजगर हैं , सौदागर हैं | ”
(रमेशराज )
|| ‘नव कुंडलिया ‘राज’ छंद’-29 ||
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” सपने खोये आज़ादी के
आज़ादी के , उस खादी के
उस खादी के , जंग लड़ी जो
जंग लड़ी जो , सत्य – जड़ी जो
जो थी ओजस , तम को ढोए
आज़ादी के सपने खोये | ”
(रमेशराज )
|| ‘नव कुंडलिया ‘राज’ छंद’-30 ||
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” जाति-धरम के लेकर नारे
लेकर नारे , अब हत्यारे
अब हत्यारे , जन को बाँटें
जन को बाँटें , मारें-काटें
काटें जन को वंशज यम के
लेकर नारे जाति-धरम के | ”
(रमेशराज )
|| ‘नव कुंडलिया ‘राज’ छंद’-31 ||
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” घर लूटा घर के चोरों ने
चोरों ने, आदमखोरों ने
आदमखोरों ने सज खादी
खादी सँग पायी आज़ादी
आज़ादी में गुंडे बनकर
करते ताण्डव आकर घर-घर | ”
(रमेशराज )
|| ‘नव कुंडलिया ‘राज’ छंद’-32 ||
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” अजब रंग है आज सियासी
आज सियासी , बारहमासी
बारहमासी व्यभिचारों की
व्यभिचारों की , व्यापारों की
व्यापारों की , सेक्स सन्ग है !
सेक्स सन्ग है !, अजब रन्ग है | ”
(रमेशराज )
|| ‘नव कुंडलिया ‘राज’ छंद’-33 ||
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” नेता चाहे , चकलाघर हों
चकलाघर हों , सब लोफर हों
सब लोफर हों , लोकतंत्र में
लोकतंत्र में , इसी मन्त्र में
इसी मन्त्र में , चले व्यवस्था
चले व्यवस्था , चाहे नेता | ”
(रमेशराज )
|| ‘नव कुंडलिया ‘राज’ छंद’-34 ||
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” पांच साल के बाद मदारी
बाद मदारी, कर तैयारी
कर तैयारी , करे तमाशा
करे तमाशा , बन्दर नाचे
बन्दर नाचे , कर-कर वादे
कर-कर वादे , पांच साल के | ”
(रमेशराज )
|| ‘नव कुंडलिया ‘राज’ छंद’-35 ||
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” राजा ने की यही व्यवस्था
यही व्यवस्था, यौवन सस्ता
सस्ता ब्लू फिल्मों का सौदा
सौदा ऐसा जिसमें नेता
नेता चाहे नव शहजादी
यही व्यवस्था राजा ने की | ”
(रमेशराज )
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रमेशराज, 15/109, ईसानगर, अलीगढ-२०२००१