नव उल्लास होरी में…..!
चिर परिहास झोरी में । नव उल्लास होरी में ।।
जात पात भूले सभी, हो प्रेममयी परिहास
सतरंगी बिखरे आभा, जहाँ स्नेहमयी बहूपाश
नाचे मन के मोर सभ, रंगों की बौछार में ।
नव उल्लास होरी में ।।
हुई सुनहरी जिंदगी, छायी नयी उमंग
मौसम संग मोहित हुए, मन नाचे मस्त मलंग
उमरिया हिरनिया हुई, गली गली चौबारों में ।
नव उल्लास होरी में ।।
गढ़े कसीदे रीत के, रंगों के आरेख,
पास पिया कि अंकवारी, आंखें बंद कर देख
छाये प्रेम का गहरा रंग, रंगों की बरसात में ।
नव उल्लास होरी में ।।
रंग – बिरंगे पर्व पर, बिना किये श्रृंगार,
नाचे गाएं ढोल बजाएं, बिना किए तकरार
नर नारी बच्चे बुढ़े, झूमे अलमस्त टोली में ।
नव उल्लास होरी में ।।
नयनों कि चंचलता में, चमक रही बाजुबंद,
पायल धुन लगा रही, ज्यों कविता कि छंद,
पिया की पुकार छुपी, प्रियतमा के श्रृंगार में ।
नव उल्लास होरी में ।।
धानी चुनरिया ओढ़ के, अम्बर करे पुकार
स्वप्न हुए इंन्द्रधनुष सी, देह इन्द्र- दरबार
ऋतु ने अंगड़ाई ली है, नववर्ष कि स्वागत में ।
नव उल्लास होरी में ।।
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