नवगीत
हरियाली है हँसमुख
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सूरज खेल रहा बदरी सँग
आँख मिचौनी.
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ऋतु वसंत है अँगड़ाई में,
हरियाली है हँसमुख,
हवा वसंती तरु-पल्लव से,
बतियाती है सुख-दुख,
आगति की दिनचर्या लिखती,
कली-खतौनी.
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सिर पर उठा लिया शाखों ने,
पंखुड़ियों का खाँचा,
कोयल ने पी-पत्रकार का,
लेख सामयिक बाँचा,
केसर का घर छोड़ परागण,
चला ‘बरौनी’.
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लिखने बैठा पत्र निमंत्रण,
फसलों का उद्घाटन,
सरसों कहती लिखना, अलसी
पहने नीली साटन,
सुरभि न्योतनी बाँट रही है,
बनी पठौनी.
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भँवरों ने छक-छककर खाया,
मकरंदों का पेठा,
अड़हुल खड़ा रहा द्वारे पर,
बाँधे लाल मुरेठा,
फागुन झूमा मधुशाला में,
लगी मनौनी.
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शिवानन्द सिंह ‘सहयोगी’
मेरठ