नवगीत
मित्रो !
“““““““““““`
‘’*मौन रहने का अर्थ*’’
““““““““““““`
मौन रहने का नहीं है
अर्थ सब कुछ मान लेना
यह समुन्दर की लहर की
आंतरिक गहराइयाँ को
शांति की सीमा अनंतक
ध्वानिकी-शहनाइयाँ को
मौसमी तपती हवा को
चाहता है जान लेना
द्वेष की उस भीड़ में यह
सोच का नत आवरण है
हृदय का संयत परागण
प्रेम का पर्यावरण है
यह समय की कालिमा को
चाहता है छान लेना
कापटिक छल छंद को यह
धैर्य से पहचानता है
यह सहन की शीलता की
तपन को अनुमानता है
यह सुखद अनुभूति को सिर
चाहता है तान लेना
मौन को स्वीकार लक्षण
आज तक माना गया है
किन्तु इसकी शक्ति को तो
एक तृण जाना गया है
वाद के प्रतिवाद को यह
चाहता है सान लेना
**************
शिवानन्द सिंह ‘सहयोगी’
मेरठ
**^**